क्या होता है जब हम आध्यात्मिक रूप से विकसित होते हैं? क्या कोई क्रमिक प्रक्रिया है जिस के माध्यम से हर कोई गुजरता है – सभी आध्यात्मिक शोधक, जिनमें कोई धार्मिक अवधारणा है या नहीं है – जैसे कि वे धीरे-धीरे अपने तरीके से ऊपर की ओर बढ़ते हैं, जब तक कि वे आत्म-साक्षात्कार की उच्चतम स्थिति प्राप्त नहीं करते हैं?

लगभग 2200 साल पहले, पतंजलि नामक भारत के एक महान आध्यात्मिक गुरु ने इस प्रक्रिया का वर्णन किया, और मानवता के लिए एक सुस्पष्ट, क्रमिक रूपरेखा को प्रस्तुत किया कि कैसे सभी सत्यान्वेशी और संत दिव्य एकत्व को प्राप्त करते हैं। उन्होंने इस सार्वभौमिक आंतरिक अनुभव और प्रक्रिया को “योग” या “एकत्व” कहा। उनके गहन सूत्रों का एक संग्रह – एक सच्चा विश्व शास्त्र है – जिसे ‘पतंजलि के योग सूत्र ‘ नामांकित किया गया है।

दुर्भाग्य से, उस समय के बाद से बहुत कम या बिना आध्यात्मिक अनुभूति वाले कई विद्वानों ने पतंजलि के लेखन पर टिप्पणी लिखी है, जो केवल,”परिवर्तन के साथ आत्मसात होता है” और ” कर्म स्वयं प्रकाशित होता है बिना किसी विवेचना के” जैसे जटिल वाक्यांशों के साथ उनकी सारगर्भित अंतर्दृष्टि को दफनाने में सफल हुआ। पतंजलि के मूल अर्थ को कोई भी पाठक कैसे समझ सकता है, जब उसे इस तरह की संभ्रमित कर देने वाली शब्दावली से गुजरना पड़ता है?

शुक्र है कि एक महान आधुनिक योग गुरु- परमहंस योगानंद, उत्कृष्ट कृति “एक योगी की आत्मकथा “के लेखक – ने विद्वानों के मलबे से काट कर पतंजलि की मूल शिक्षाओं और रहस्योद्घाटनों को पुनर्जीवित किया है। अब “स्पष्टीकरण पतंजलि के योग सूत्रों का “में, योगानंद के प्रत्यक्ष शिष्य, स्वामी क्रियानंद,, अपने गुरु के, पतंजलि के सूत्रों का सुस्पष्ट और सुग्राह्य विवरण, को साझा करते हैं।

जैसा कि क्रियानंद अपने परिचय में लिखते हैं, “मेरे गुरु ने व्यक्तिगत रूप से अपनी कुछ सबसे महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टियां, इन सूत्रों में मेरे साथ साझा की हैं। साढ़े तीन साल मैं उनके साथ रहा, उस दरम्यान उन्होंने योग की बुनियादी शिक्षाओं में भी मुझे गहराई तक साथ दिया।”

“मैं पतंजलि द्वारा सम्मिलित किए गए कई विषयों के बारे में व्यक्तिगत रूप से अपने गुरु से पूछने में सक्षम था। उनकी व्याख्याएँ मेरे साथ जुडी हुई हैं, और [इस पुस्तक के लेखन में] एक अमूल्य मदद रही हैं।