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“आपको क्रिया योग द्वारा दी आध्यात्मिक शांति को अनेकों तक पहुँचाने के लिए नियुक्त किया है। करोड़ों जोकि पारिवारिक संबंधों और भारी सांसारिक कार्यों में डूबें है, आपसे प्रेरणा लेंगे, क्यूंकि आप उनकी तरह एक गृहस्थ हैं। आपको उन्हें दर्शाना होगा कि सबसे उच्तम आध्यात्मिक प्राप्तियाँ गृहस्थ को मना नहीं हैं। आपके संतुलित जीवन से वे समझेंगें कि आत्मबोध आंतरिक, न कि बाहरी, संन्यास पर निर्भर है।”महावतार बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय जी को कहा था

Lahiri Mahasayaलाहिड़ी महाशय स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरी के गुरु थे, और इसलिए वे परमहंस योगानंद जी के परमगुरु थे। लाहिड़ी महाशय अपने गुरु महावतार बाबाजी द्वारा क्रिया योग की शिक्षा का विश्वभर में प्रचार करने लिए चुने गए थे । एक पूर्ण रूप से सिद्ध आत्मा, लाहिड़ी महाशय फिर भी शादी शुदा थे, और उनके ऊपर और कई जिम्मेवारियाँ थीं। उनका सद्भावपूर्ण जीवन आशा और प्रेरणा का आकाशदीप बना, सांसारिक जिम्मेवारियों वाले लोगों को यह दर्शाने के लिए कि कैसे वे भी आत्मबोध के पथ पर चल सकें।

रिया योग की महान शिक्षाओं को लोगों तक पहुँचने में और योग द्वारा प्राप्त होने वाली मुक्ति के द्वार सभी तक खोलने में उनकी विशेष भूमिका के लिए परमहंस योगानंद जी ने लाहिड़ी महाशय को योगवतार की उपाधि दी।

लाहिड़ी महाशय ने अपना अधिकतर जीवन बनारस में जीया, उनके 1895 में महासमाधी तक। वे परमहंस योगानंद जी के माता और पिता के भी गुरु थे, और उन्होंने भविष्यवाणी दी कि योगानंद जी एक ‘आध्यात्मिक इंजन’ होंगें, जोकि बहुत सारी आत्माओं को परमात्मा तक पहुँचाएंगे।

लाहिड़ी महाशय की महासमाधी

Murti Lahiri Mahasaya in Natureवामी केशबनन्द ने परमहंस योगानंद जी को लाहिड़ी महाशय के सचेत रूप से इस दुनिया से जाने के बारे बताया:
“मेरे गुरु के उनके शरीर को त्यागने से कुछ दिन पहले ही,” केशबनन्द जी ने कहा, “वे मेरे सामने प्रकट हुए जब में अपने आश्रम में बैठा था।
‘अभी बनारस आओ।’ यह शब्द कह कर वे चले गए।
मैंने तुरंत बनारस के लिए ट्रैन पकड़ी। अपने गुरु के घर पर मैंने अनेक शिष्यों को उपस्थित पाया। घंटों के लिए उस दिन गुरु जी ने गीता को समझाया, फिर उन्होंने हमसे कहा:
‘मैं घर जा रहा हूँ’
दुःखमय सुबकना एक प्रचंड धारा की तरह फूटा।
‘सुखद रहो, मैं पुनर्जीवित होऊँगा।’ यह कहने के बाद लाहिड़ी माहश्य ने तीन बार अपने शरीर को गोल घुमाया और उत्तर की ओर पद्मासन मैं बैठ वे यशस्वी रूप से महासमाधी* ले लिए।”
* आखरी ध्यान जब एक गुरु, जो जानतें हैं कि कब उनके शरीर का अंतिम समय आएगा, अपने को ब्रह्माण्डीय ॐ मैं विलीन कर लेते हैं।